अगर में प्रधानमंत्रि होती
यदि किसी तरह कभी,प्रधानमंत्री मैं बन जाती।
खुश होते रिश्तेदार,सबकी चहेती मैं हो जाती।।
देश के लिए ही मेरा जीवन, हो जाता समर्पित।
मित्रों में भी तब कुछ,अधिक ही रहती चर्चित।।
विकास और प्रगति की, योजनायें नयी बनाती।
फिर कहाँ मैं लड्डू,चकली,मठरी,केक बनाती।।
अपने मंत्री-मण्डल से, मीटिंग्स रोज़ मैं करती।
पति और बच्चों से फिर, कैसे-कब बातें करती?
देश-विदेशों की यात्राएं, कितनी ही कर आती।
पति के साथ रोज़ शाम को,सैर नहीं कर पाती।।
परिवार के संग बैठ घर पर,टीवी देख न पाती।
तब कहाँ सीती-काढ़ती, स्वेटर बुन नहीं पाती।।
सबसे पहले देश में, शिक्षा के लिए काम करती।
समान शिक्षा नीति को,पूरे भारत में लागू करती।।
आरक्षण जाति पर नहीं,आर्थिक स्तर पर होता।
प्रत्येक बच्चा, मनचाही शिक्षा का अवसर पाता।।
शिक्षकों को भी उनका, योग्य सम्मान दिलाती।
नालंदा,तक्षशिला सी,देशी हर यूनिवर्सिटी होती।।
वैज्ञानिक, इंजीनियर, डॉक्टर उच्च स्थान पाते।
नई-नई तकनीक, अनुसंधान की सुविधा वे पाते।।
भारत के हर गाँव, शहर में बिजली पानी मिलते।
यातायात के आधुनिक साधन भी उपलब्ध होते।।
पर्यटन को विकसित कर, आर्थिक सुदृढ़ता लाती।
कारखाने नये-नये खोल,आत्मनिर्भर देश बनाती।।
सेनाओं को सुसज्जित कर, देश सुरक्षित करती।
किसान ख़ुश होते, आत्महत्या न करनी पड़ती।।
कानून व्यवस्था मजबूत कर, खुशहाली मैं लाती।
अपहरण, बलात्कार, डकैती, यहाँ न होने पाती।।
भारतीय संस्कृति को,पूरे जग में प्रसारित करवाती।
धर्म-पुराणों-वेदों को,शिक्षा में सम्मिलित कर पाती।।
प्राचीन विज्ञान तकनीकी का अनुसंधान करवाती।
ईश्वर के आशीष से, देश को विश्व-गुरु बनवा पाती।।
यदि कभी यूँ ही भारत की, प्रधान मंत्री मैं बन पाती।
दिल्ली के लाल किले पर, तिरंगा झंडा मैं फहराती।।\