अग्नि परीक्षा
मानव योनि में जब जन्म लिया, तो परीक्षाओं से क्या डरना।
परीक्षा पग पग पर ही होती, चाहे कुछ भी हो यहाँ करना।
केवल सीता माँ ने ही नहीं दी,हर नर-नारी को देनी पड़ती।
जन्म से मृत्यु तक हर पल ही, एक परीक्षा से वह गुजरती।
गाँव में किसान बीज बोकर, फ़सल के परिणाम को देखे।
यदि अच्छी नहीं हो पायी तो,वह रोटी-रोज़ी को फिर तरसे।
सीमा पर खड़ा सिपाही दृढ़ भी, अटल शौर्य दिखलाता है।
युद्ध विजय हुई तो शूर वीर है, वर्ना शहीद वही कहलाता है।
छोटे बच्चे भी हैं तनावग्रस्त, परीक्षा की तैयारी में वे व्यस्त।
बड़े होकर भी प्रतियोगिता, नौकरी-इंटरव्यू में त्रस्त-व्यस्त।
विवाह के लिये भी डरता है, जीवन साथी कैसा वह पायेगा?
कैसा वैवाहिक जीवन होगा, क्या सुखमय समय बितायेगा?
चाहे भारत का हो एक जवान अथवा भोला सा किसान चाहे।
अगणित परीक्षाएं देता वह है, अपने जीवन में चाहे-अनचाहे।
सच तो यह है कि यह जीवन ही,शृंखला परीक्षाओं की लगती है।
कुछ होती बहुत सरल-सुखद, कुछ अग्नि परीक्षायें ही लगती हैं।
जीवन पथ पर नित सत्कर्म कर, निष्कंटक अग्रसर हो जाता है।
अग्नि परीक्षा में सफल होकर,वह मानव कुंदन सम हो जाता है।