बगावत
बग़ावत यह शब्द ही थोड़ा विरोधी सा लगता है।
किन्तु यदि हो 1857 की, फिर अपना लगता है।
जब स्वतंत्रता के लिये देशभक्तों ने ठान लिया था।
देश को आजादी दिलाकर ही फिर चैन लिया था।
यदि बग़ावत सत्ता के खिलाफ़ हो तो मुश्किल है,
माना कि सब को यहाँ, अधिकार यह हासिल है।
यदि इससे होता,देश को जान-माल का खतरा है,
तो यह हमारे लिए सिर्फ बर्बादी का एक चेहरा है।
आज के किशोरों में, बग़ावत के लिए एक जुनून है,
क्योंकि उनमें नहीं गंभीरता,बस खौलता हुआ खून है।
माता-पिता एवं अध्यापकों के लिए चुनौती पूर्ण है,
पर प्यार औेर चतुराई से हमें,समझाना उन्हें जरूर है।
बागवान को प्यार से वाटिका में हर पुष्प खिलाना है,
ज्यों गुलदस्ते में हर फूल को उचित स्थान दिलाना है।
परिवार में यूँ ही भांति-भांति के रिश्तों को बनाना है,
न हो बग़ावत वहाँ कोई,ऐसे प्रत्येक को सम्भालना है।