बरसात की एक रात
अँधियारी सावन रात,बादल भी छाये हुए।
तुमसे मिलने को अब आऊँ मैं कैसे प्रिये।।
वर्षा की ये फुहारें मेरी चुनरी भिगोने लगी।
बारिश रानी जैसे कोई कहानी सुनाने लगी।
नदिया लेती उफान है, मैं कैसे आऊँ प्रिये।
बादल गरजे जब भी, दिल धड़कता मेरा।
मेरा मन भी बेचैन है, बस नाम लेता तेरा।
नदिया बड़ी गहरी, तैरकर आऊँ कैसे प्रिये।
पार नदिया तो जरूर करनी मुझे आज है।
वर्षा का भी कुछ नया ही रूप अंदाज़ है।
शायद इसे भी हमारे मिलने से ऐतराज़ है।
राज़ अपना सभी से मैं छिपाऊँ कैसे प्रिये।
प्रिये तुम हो उस तरफ मैं भटकती हूँ इधर।
कोई मिलने की तरकीब ढूँढूं कैसे व किधर?
व्याकुल विरहिन विनती करती रब से प्रिये।
पार नदिया तुम मुझको करा दो आज रब।
घर से मटका लेकर तो चल पड़ी हूँ मैं अब।
मिलन की आशा मन में संजोए ऐसे प्रिये।
दुर्भाग्य से मटका था कच्चा गल ही गया वो।
सपना मिलन का ऐसे अधूरा रह ही गया वो।
हीर-रांझा,लैला-मजनू या सोहणी महिवाल हो।
नहीं होती है हर प्रेम कहानी पूरी ऐसे प्रिये।