बसंत ऋतु
हरा गलीचा बिछाकर उसने फूल बसंती काढ़े हैं।
कहां छुपा है ईश्वर वह जिसने इतने रंग भरे हैं॥
आज धरा पर उसके रंगों ने बिखराई ये बसन्त है।
सब लोगों से नहीं छुपा, वह अविनाशी अनन्त है॥
अडिग उच्च पर्वत निर्मित कर धैर्य सिखाया जिसने।
लाल चुनर ले गोरी सोचे, सुरभित इसे किया किसने।
नील गगन को छूने की,आशा को है जगाया उसने॥
पर्वत की सुन्दर घाटी में रंग बिरंगे पुष्प खिलाकर।
बताया हमको जीवन स्वर्ग बनाना है मुस्करा कर॥
फूलों की घाटी में सुन्दर अपना भी घर बनाना है।
भूमि पर फिर पेड़ लगाकर इसको हरित बनाना है॥
नमन करें उस चित्रकार को जिसने इतने रंग भरे।
जीवन सुन्दर हमको दे उसमें इन्द्रधनुषी रंग भरे॥