भ्रूण हत्या मुक्ति
प्राचीन भारतीय संस्कृति में तो, पूजी जाती थीं बेटियाँ।
पूजनीया, सम्मानित थीं वे और कहलाती थीं देवियाँ।।
कब से वे अजन्मी ही, अपहरण, बलात्कार के भय से।
मारी जाने लगीं, कभी दहेज न जुटा सकने के भय से।।
हमारे देश में माना गया है, अपराध भ्रूण-लिंग निदान को।
फिर भी चढ़ाया जाता है बलि, कितने बालिका-भ्रूण को।।
आशा से माँ ने,उसे बिन भेद-भाव,सहर्ष सींचा निज रक्त से।
पिता का भी है अंश उसमें, परंतु क्यों हैं वे विरक्त उस से।।
सुनो! बेटे की चाह में, भ्रूण हत्या को यूँ बढ़ाने वालो सुनो।
कहाँ से खोज लाओगे, विवाह-योग्य वधु,बेटे वालो सुनो।।
नव-रात्रि में दुर्गामाँ-पूजा, पूर्ण तुम भला कैसे कर पाओगे।
कंचकों के लिए कहाँ-कहाँ, कन्यायें खोजने तुम जाओगे।
भारत में बालकों से बहुत कम, अनुपात में हैं बालिकाएं।
किन्तु फिर भी नहीं रोक पा रहे, माँ-बेटी की ये यातनाएं।।
माँ को तो वही दर्द, वही खुशी और वही एहसास होता है।
जब गर्भ में उसके चाहे लड़की हो अथवा लड़का होता है।।
तकलीफ़ ही नहीं उसकी, अपराध-बोध भी बढ़ जाता है।
जब उसकी कोख के प्यारे को, अजन्मा ही मारा जाता है।।
बनना होगा माँ को अब तो, देवी दुर्गा-भवानी सा सशक्त।
न सहना पड़ेगा उसे फिर यह,बनी रह कर मौन व अशक्त।।
भ्रूण हत्या नहीं है, समाज की एक अलग-विलग समस्या।
आश्रित एवं सम्मिलित हैं, साथ इसके कई ऐसी समस्या।।
जब महिला भी समझी जाएगी, समाज में समान सदस्या।
धीरे-धीरे कम होकर, समाप्त भी हो जाएगी यह समस्या।।
घर और परिवार से ही, भ्रूण हत्या को रोकने के प्रयास में।
जुटना होगा हमें अब,इसकी जड़ों को हिला कर काटने में।।
बेटियों को देना होगा,बेटों समान भोजन, शिक्षा और प्यार।
तब न होगा कन्या-अपहरण,दहेज़-उत्पीड़न या बलात्कार।।
वास्तविकता तो यह है कि, बेटे से केवल एक वंश चलता है।
परन्तु बेटी से मायके-ससुराल, दोनों कुल का मान बढ़ता है।।
बेटे की चाह में कुछ नादान,नित बेटियों को करते हैं तिरस्कृत।
बेटियाँ कला,शिक्षा,विज्ञान या अंतरिक्ष,हर क्षेत्र में हैं पुरस्कृत।।
कम,पर आज भी समाज में हैं, कुछ लोग आधुनिक सोच वाले।
भाग्यशाली हैं हम जो पाए हमने,ऐसे घर वाले व ससुराल वाले।।
जहाँ भाई ही नहीं, पिताजी और दादाजी भी पैर हमारे पूजते।
काश! समाज के अन्य परिवार भी,यही रीतियां मानने लगते।।
बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ व करो महिलाओं का सशक्तीकरण।
ऐसे नारों व वायदों का तब न होता,औचित्य और न कोई चरण।।
बेटी-बेटे शुरु से ही जन्म,शिक्षा,व्यवसाय, विवाह में होते समान।
घर,परिवार,समाज ही नहीं,पूर्ण देश में पाते वे एक सा सम्मान।।