कोरोना का काल
कोरोना ने किया बुरा हाल,
पूछे न कोई गरीब का हाल।
रहने को सिर पर छत नहीं,
खाने को मिले न रोटी दाल।
सरकार कहे घर पर ही रहें,
किन्तु वे तो हुए बेघर बेहाल।
मिलने नहीं आये रिश्तेदार,
सबका है एक सा हाल-चाल।
बच्चों ने खोये हैं माता-पिता,
किसी ने खोये हैं बाल गोपाल।
अपनों को खोने की पीड़ा से,
रो रो कर हुआ है हाल बेहाल।
विद्यार्थियों पर है संकट भारी,
उनकी तो बिगड़ी है चाल ढाल।
कैसे मिलेगी उच्च शिक्षा उन्हें,
प्रश्न यह है उनके जी का जंजाल।
आगे भी नौकरी मिलेगी कैसे,
है यह उनके करिअर का सवाल।
कोरोना ने थाम दिया है जीवन,
कब फिर आयेगा पहले सा काल?
कभी तो समाप्त होगा यह सब,
कब आयेगा इसका अन्तकाल?