कोरोना
फाल्गुन फीका सा गया, खिले न कोई रंग।
चैत्र के नवरात्रि में भी, मिले न देवी दर्शन।।
राम जन्म पर भी, सब कुछ था यों ही शांत।
पंचवटी भी सूनी थी, मन था बड़ा अशांत।।
श्री रामजी की इस भूमि पर था कुछ भय का साया।
मन में था विश्वास न होगा, कोई पीड़ित कोरोना का।।
पर वैशाख आते ही मच गया, यहां ऐसा शोर।
फैल गई बीमारी यहाँ भी, धीरे-धीरे चहुँ ओर।।
सुना था ज्येष्ठ मास की गर्मी से, मर जाएगा ये।
किन्तु इस महीने तो बढ़ गया, यहां कुछ ऐसे ये।।
मिलने लगे कोरोना पीड़ित, शहर में कई लोग।
प्रभु श्री राम की कृपा से, सब रोगी हुए निरोग।।
आषाढ़ की वर्षा में कुछ,और यहां बढ़ गए रोगी ।
चिंता में सब लोग पड़ गए, कैसे रहें हम निरोगी।।
बाबारामदेव के योग से थी, कुछ तो हिम्मत आई ।
काढ़ा पी पी कर लोगों ने, प्रतिरोधक शक्ति बढ़ाई।।
गहरी चिंता में पड़ गये, सुनकर यह सब लोग।
नहीं बचा सके डॉक्टर, इस शहर में कुछ लोग।।
करें प्रार्थना हम सब, हे प्रभु…… सुनो., हे ईश।
आगे अब रक्षा करो हम कहें झुका कर शीश।।