कोरोना में शादी
निमंत्रण पत्र मिला हमें, देवर के मित्र की शादी का।
हम ने कहा अभी तो बहुत जोखिम है कोरोना का।।
बहुत आग्रह से बुलाने पर, मन कुछ बना जाने का।
कपडों के साथ पैक किया, डब्बा मैचिंग मास्क का।।
सज धज कर सभी बाराती निकले,खुशी थी मनानी।
कोरोना के डर से छःछः फीट की दूरी भी थी बनानी।।
नाच रहे थे बाराती अलग-थलग,शहनाई बज रही थी।
यह क्या,दूल्हे की माँ की साड़ी तो हमारी जैसी ही थी।।
दरवाजे पर पहुंचते ही, स्वागत हुआ हमारा शानदार।
दुल्हन की माँ गलती से, हमसे गले मिलीं बार बार।।
फ़िर देखा इत्र की जगह, छिड़काव सैनिटाईजर का।
कोल्डड्रिंक न,काढ़ा हल्दी-तुलसी व गर्म मसाले का।।
देखते ही काढ़ा हमने कहा’नहीं’और नाक भी सिकोड़ी।
ओके तो आप स्नैक्स लें या फिर लीजिए चाट थोड़ी।।
‘चाट’मुहँ में आया पानी और टपकने भी लगा मास्क से।
सोचा मास्क तो बदलना ही पड़ेगा, चाट क्यों न खा लें।।
दूल्हे के साथ जयमाला के लिए, स्टेज पर पहुंचे सब।
भाइयों ने दुल्हन को,मस्ती में खूब ऊँचा उठाया जब।।
दूल्हे के दोस्तों ने,जोश से दूल्हे को उठाया और भी तब।
कोरोना और सोशल डिस्टेंस की उड़ गयीं धज्जियाँ सब।।
कन्या पक्ष के लोग चिल्लाए, डालो बेटी डालो माला।
दूर से ही उसने फेंकी ऐसे,मेरे देवर के गले डली माला।।
शर्माकर,उन्होंने निकालकर दूल्हे को पहनाई वह माला।
मास्क संभालते हुए दुल्हन को उतारा वहाँ पटक डाला।।
दुल्हन को उठाने के चक्कर में, दूल्हा भी गिरा बेचारा।
मंडप में जैसे तैसे दूल्हा-दुल्हन को पहुंचाया दे सहारा।।
पूजा तो हो गई,पर फेरों पर तो दुल्हन गिरी जा रही थी।
दूल्हा क्या,तबतो सहेलियाँ भी न उसे सँभाल पारहीं थीं।।
देवर से दूल्हे ने कहा, दोस्ती का फर्ज़ तो ज़रा निभाओ।
दुल्हन को,नहीं अपनी भाभी को फेरों तक ज़रा उठाओ।।
अब दूल्हा एवं पीछे हमारे देवर दुल्हन उठाए फेरे ले रहे थे।
सब लोग अक्षत और फूल उन पर बरसा क्या फेंक रहे थे।।
आखिर में दूल्हे की आँख में गिरे अक्षत और वह गिर गया।
किन्तु दुल्हन को उठाए मेरे देवर ने पूरा वह फेरा कर लिया।।
तभी पंडितने कहा शुभमंगल सावधान विवाह सम्पन्न हुआ।
दूल्हा तो नहीं है पर इन दोनों का तो विवाह सम्पन्न हुआ।।
सुनते ही पंडितजी को घरात बारात दोनों चिंता में पड़ गयीं।
हमारे परिवार पर सचमुच एक गहन समस्या आन पड़ गयी।।
सभी कर रहे थे बातें बड़ी,तभी एक दोस्त की आवाज़ आई।
इनके उल्टे फेरे करवा के विवाह से करो तौबा और दो दुहाई।
सुनकर यह हमारे देवर की तो, जैसे जान पर ही बन आई।
पचास किलो की दुल्हन, अब तक मुश्किल से थी उठाई।
हमें तभी तरकीब सूझी और हमने एक व्हीलचेयर मँगवाई।।
दुल्हन बिठा कर उस पर,शीघ्र देवर जी के हाथ में थमाई।।
जल्दी जल्दी उल्टे फेरे लेकर देवर की शादी तुड़वाई।
एवं दू्हे दुल्हन के सीधे फेरे से शादी संपन्न करवाई।।
‘अंत भला तो सब भला’और य़ह बात समझ भी आई।
कोरोना काल में घर से नहीं निकलना मेरे बहिन-भाई।।