दहेज
कैसे कहूं दहेज न लेना,
जब मेरा मन ही साफ नहीं।
लक्ष्मी सी बेटी है हमें देना,
क्या बेटा तुम्हारा लायक नहीं।
बेटी को सब चाहूँ देना,
माँगने वालों को करुँ माफ़ नहीं।
बदलाव चाहे यह समाज,
परन्तु बदलना चाहे आप नहीं।
बेटी-बेटे हैं एक ही समान,
किन्तु भेद भाव करें आप कहीँ।
एक सी शिक्षा और प्यार,
सबको देते हैं उनके माँबाप नहीं।
बेटी के विवाह में होगा खर्च,
करते उसकी शिक्षा में कमी नहीं?
जन्म-दाता करते भेदभाव,
समाज से अपेक्षा का अधिकार नहीं।
समान शिक्षा और विरासत,
सचमुच मिलता है यहाँ सदा नहीं।
प्रथम करें स्वयं में बदलाव,
फ़िर बेटी को समझें कुछ कम नहीं।
बनायें उसे भी इस लायक,
बेटेवाले न समझें उसमें कुछ दम नहीं।
सदैव मिलेगा उचित सम्मान,
होगी कभी फिर दहेज की मांग नहीं।
हँसी खुशी होंगे विवाह जब,
जीवन साथी बनेंगे तब अर्थों में सही।
तुम समाज सुधारने के पहले,
बदलो स्वयम के परिवार यहाँ सभी।