धन
माँ पहनाती है जो लंगोट उसमें जेब नहीं होती,
और अंत में पहनने वाले कफन में भी नहीं होती।
यहाँ इन्सान कमाने में धन ताउम्र लगा ही रहता है,
हालाँकि उसे शायद इतनी जरूरत भी नहीं होती।
न इश्क कर इस धन-दौलत से तू इस कदर यारा,
पर सांसे खरीदने के लिये यह काम की नहीं होती।
माना कि यह जरूरी भी है जिंदगी जीने के लिये,
किन्तु जिंदगी सिर्फ़ इसके लिये ही तो नहीं होती।
फख्र तुझे तेरी मिल्कियत पर, जो आज पास तेरे,
क्या पता कल यही किसी और की नहीं होती।
लुटा सकता है धन दौलत जिन पर, आज लुटा ले,
फिर कल शायद उन्हें तुम्हारी जरूरत नहीं होती।
ज़िन्दगी भर जमा कर ली धन दौलत जो इतनी तूने,
इसका लुत्फ़ उठाने की फिर तेरी ताक़त नहीं होती।
कमाना है अगर यहाँ कुछ तो पुण्य-कर्म कमा ज़रा,
सुना है, उस जहां में इस धन की जरूरत नहीं होती।