एहसास - ए - इश्क़
कितनी शिद्दत से हमने चाहा था उनको,
सोचते रहते हर वक्त कैसे जाये बताया उनको।
ग़ैर तो गैर थे अपनों को भी बताया न गया,
नज़र लग जाये न कहीं सब से छुपाया उनको।
यूँ तो हर बात किया करते थे उनसे,
इश्क उनसे है हम को न बताया उनको।
दिल के टुकड़े होंगे ग़र न मिले वे हमको,
इसी खौफ़ ऐसा कि न गया बताया उनको।
दिल की दिल में ही रही, जुबां पर लाएं कैसे,
कई मर्तबा हमने नज़रों से भी बताया उनको।
कोशिश-ए-नज़र भी नाकाम रही जब,
सोचा शायद मरकर ही जाए बताया उनको।
कि ख़ुदकुशी ज़ुर्म है मालूम था हमको,
फ़िर ख़त लिख कर ही हमने बताया उनको।
हाय ख़त का भी ज़वाब आया न कोई,
फ़िर इशारों से पास बुलवाया उनको।
दिल की नजदीकियों ने काम किया,
धड़कनों ने हमारी कुछ सुनवाया उनको।
आग दोनों तरफ़ थी एक जैसी,
यूँ एहसास-ए-इश्क करवाया उनको।