एक नज़र
एक डरी-डरी सी नजर,
है यह बेक़रार सी नजर।
जिधर भी उठती है यह अब,
आये मायूसी सी ही नजर।
हाल बेहाल और बदतर है,
और है ख़ामोश सी नजर।
खौफ़ का ऐसा छाया मंजर,
है कुछ डबडबायी सी नजर।
कुछ भी सूझे नहीं हमें अब,
अपने अब आते हैं नहीं नज़र।
करते हैं दुआ यही हम सब,
कहीं से आ जाए तू ही नजर।
सब कुछ सह सकते हैं हम,
यदि सीधी हो एक तेरी नज़र।
दुःख के बादल को हटा आजा,
एक सहारा आता है तू ही नजर।