घोंसले
उनके हुए कुछ बुलन्द हौसले,
हो गये बीच ऐसे कुछ फासले।
उड़ गये चूज़े बड़े होकर जब,
खाली पड़े रह गये यूँ घोंसले।
आशायें लगायी थीं माँ बाप ने,
तोड़ कर बच्चे उन्हें ही चल दिये।
उंगली पकड़कर चलना सीखा,
छोड़कर उंगली वही वे चल दिये।
बचपन से बड़ा किया उन्होंने,
अपने सपने सारे ही त्याग कर।
माता पिता से वे लेते ही रहे यूँ,
कुछ ज़िद कर, कुछ माँग कर।
जब बने लायक कुछ करने के,
तो उनका अलग जहाँ बन गया।
माँ-बाप,भाई-बहिन को भूल के,
स्वयं,साथी,बच्चों से हो घर गया।