होली-२
जैसे ही पावन फाल्गुन का आया यह माह,
बढ़ी मन में मनाने को होली के पर्व की चाह।
होली के त्योहार को मनाने का है उल्लास,
बढ़ता ही जाये यह जैसे-जैसे आये होली पास।
प्रहलाद की विजय और होलिका का दहन,
अच्छाई द्वारा आततायी और बुराई का दमन।
हिन्दुओं के नव वर्ष का होता है इससे प्रारम्भ,
हर्षोल्लास से पहला पर्व मनाकर करते शुभारम्भ।
रंगों और खुशियों का होली में होता है समागम,
उमंग उत्साह का यह पर्व बताते निगम व आगम।
ऋतु तथा मौसम के परिवर्तन का यह समय,
प्राकृतिक रंगों व होली दहन करते रोगों से अभय।
खेत और खलिहान भी दिखाते खूब रंगीनियाँ,
हरे खेतों में पीली सरसों व सुनहरी गैहूँ की बालियाँ।
लहलहाती फ़सल से किसानों के मन में छाई उमंग
आहुति हेतु लाये जौ-गैहूँ की बालियाँ,चने व नारियल संग।
बालक,वृद्ध, युवा सभी खुशी से पर्व मनाते हैं,
भूलकर आपसी बैर-भाव वे सब गले मिल जाते हैं।
साजन संग रंग में सराबोर होने को आतुर भोरी,
साजन भी बेचैन प्रीत के रंग में भिगोने को गोरी।
जैसे राधा संग कान्हा प्रीति के रंग में थे सदा भीगे
हर युगल प्रेमी होली में प्रेम के रंगों में खूब ही भीगे।
अवनी से अम्बर तक उड़े रंग, गुलाल और अबीर,
मानो अवनी-पुत्री से आज तो होली खेल रहे रघुवीर।
भारत के जन-जन में दिखती होली की खूब उमंग,
घर-घर से आरही पकवानों की मिठास और सुगंध।
पलाश के फूलों से लाल और टेसू से बनाये पीला रंग,
झूमें-नाचें मस्ती में लोग एवं बजायें ढोल-ताशे और मृदंग।
होली में आया ऐसा जोश, खो गये सब होश लोग
होली के रंग में रँगे बच्चे-बड़े सभी भूल कर महारोग।
प्रार्थना प्रभु से प्रथम है आहुति में विषाणु भस्म हो जाएं,
हम सब निरोगी रहें, दुःख-दर्द-रोग सब ही नष्ट हो जाएं।