इतिहास
पृथ्वी पर भूमि व पानी था, इतिहास बताता है यही हमें।
बहुत बड़ा भूखण्ड एक था, नहीं बंटा हुआ महाद्वीपों में।\
फिर धीरे-धीरे धरती पर, जल-संकायों ने बाँटा भूमि को।
महासागरों के निर्मित होने से, महाद्वीपों में बाँटा इसको।
कालान्तर में पृथ्वी पर सागर, पर्वत और द्वीप बने थे ऐसे।
फिर विश्व बंट गया कुछ महाद्वीपों, देशों और प्रांतों में जैसे।
सुन्दर-सुचारू व्यवस्था हित, राजाओं ने शासन किया था।
रामराज्य ने सभी भांति, जनता के दिल को जीत लिया था।
किन्तु स्वार्थी और लोभी राजाओं ने,सब छीनना चाहा था।
स्व इच्छा हेतु सिकंदर ने भी, पूरी धरती को पाना चाहा था।
लगता था जैसे सत्ता मद में, कुछ राजाओं में थी होड़ लगी।
चहुँ ओर अगणित युद्ध हुए थे, धरती माँ घायल होने लगी।
अखण्ड भारतवर्ष भी, कितने भू खण्डों से अलग हुआ।
अब लगता था कि शांति है, भारत अपना आजाद हुआ।
हमको है गर्व बहुत ही, भारत की विभिन्नता में एकता पर।
किन्तु दुर्भाग्य से बंटने लगे, कुछ जाति-धर्म-भाषाओं पर।
है समय यही जब हमें जुटना है, इसकी एकता बचाने में।
विश्वास-आस्था पुनर्जीवित कर, अपने पूर्व से भाईचारे में।
अपने परिवार से जुड़े रहेंगे तो समाज, देश और विश्व जुड़े।
इतिहास सिखाता, बर्बादी से बचना तो भाई न भाई से लड़े।