जीवन प्रकृति
चंद्रमा की चंचल किरणों से कुछ शीतलता पाएँ,
धरती से धैर्य और दिवाकर से हम ऊर्जा ले पाएँ।
सागर जैसी अपने अन्तर्मन में, गहराई हम लाएँ,
अचल अडिग ऊँचे पर्वत से,अटलता सीख पाएँ।
वृक्षों जैसे हम सब को कुछ न कुछ तो देते जाएं,
अम्बर सा फैला हुआ,विशाल हृदय हम रख पाएँ।
फूलों से खिलखिलकर, सबको मुस्काना सिखलाएँ,
सरिता जैसे हम भी,सब प्यासों की प्यास बुझा पाएँ ।
निःशुल्क मिली नैसर्गिकता का अपमान न होने पाए,
सृष्टा को सुन्दर सृष्टि हेतु,धन्यवाद कभी हम कर पाएँ।