किताब-2
जीवन में अत्यधिक ही, रखती महत्व पुस्तक,
देकर भंडार ज्ञान का,उन्नत करती यह मस्तक।
बचपन से पढ़ रहे हैं हम, किताब ही किताब,
इसी से सीखीं हम सबने भाषायें और हिसाब।
किताबों से नाता तो पहले से ही जुड़ जाता है,
जग में आकर इनसे ही तो सब सीखा जाता है।
वैसे तो यह रिश्ता माँ के गर्भ में ही जुड़ जाता है,
जब कोई पिता,माता को इन्हें पढ़ कर सुनाता है।
शिशु के प्रथम जन्म दिन की य़ह अनुपम भेंट,
जब पाता है वह रंग बिरंगे चित्रों वाली पुस्तक।
आनंद उसका देख माँ बाप भी होते उल्लासित,
तभी से छप जाती है वर्ण माला उसके मस्तक।
विद्यालय से महाविद्यालय तक साथ निभाती हैं,
नोट्स बनाने के लिए पुस्तकें ही काम आती हैं।
कोई प्रतियोगी परीक्षा अथवा इंटरव्यू देना हो,
किताबें ही बढ़ाती हैं ढांढस जैसे कोई मित्र हो।
कॉलेज में लेक्चर देने के लिए भी देती थीं साथ,
वर्ना मुश्किल होता,विद्यार्थियों पर ज़माना धाक।
टीवी न चल रहा हो,सफ़र में अकेले हों यदि आप,
आपकी मायूसी छू हो जाएगी यदि किताब हो हाथ।
सोचती हूँ यदि हमारे जीवन में किताबें न होतीं,
जिंदगियां मनुष्य की ज्ञान का भंडार कैसे होतीं?
वेद-पुराण,गीता-रामायण एवं महाभारत न होतीं।
नानी-दादी, मां-बाप ने बच्चों को सुनायी न होतीं।
सुन-सुन कर एक दूसरी पीढ़ी से पहुँचती जरूर,
मगर क्या होता तब उनका यही और सही स्वरुप?
क्या हम सब सीख पाते और क्या ही सहेज पाते,
कितना मुश्किल हो जाता बनाना भी एक प्रारूप?
हो कॉमर्स, विज्ञान, आर्ट्स हो या फिर मनोरंजन,
साहित्य कोई भी हो अथवा कोई हो इसकी भाषा।
बिना पुस्तक के प्रकाशन के मिल नहीं पाती हमें,
नहीं दे पाते हम सही उत्तर, व्याख्या व परिभाषा।
प्रेमिका के दिल को कर देती है झंकृत कोई क़िताब,
मिल जाता जब वर्षों पुराना सूखा हुआ एक गुलाब।
कोई राग छोड़ भक्ति में रच देते राम चरित मानस,
आज भी लिखते हैं कविता,शायरी या पूर्ण किताब।
जीवन के अंतिम पड़ाव में भी हम रखते इन्हें साथ,
दोस्त,
रिश्तेदार छोड़ देते तब भी निभाती हैं साथ।
कंप्युटर,मोबाइल,इन्टरनेट भी आज हैं हमारे साथ,
परन्तु पुस्तकों का विकल्प नहीं लगा है हमारे हाथ।
बचपन से अंत तक देतीं हैं हमारा साथ ये किताब
क्यों कि इनसे ही सीखे हमने जिंदगी के ये हिसाब।