श्री कृष्णमं वंदे जगद्गुरु
सुदर्शन चक्र होने पर भी कृष्ण मधुरिम मुरली ही बजाते हैं।
द्वारिकाधीश होकर भी दीन सुदामा से खूब मित्रता निभाते हैं।
यमुना में आये कालिया नाग से सबको कृष्ण बखूबी बचाते हैं।
मृत्यु के सिर पर निर्भीक खड़े होकर नृत्य कर के दिखाते हैं।
राधा के कान्हा ग्वाले,नंद-यशोदा सब छोड़ के मथुरा जाते हैं।
वहां कंस का मर्दन कर माता-पिता व यदुकुल को बचाते हैं।
पुकार सुन द्रोपदी की लाज बचाने क्षण में दौड़े चले आते हैं।
अन्याय को मिटाने और धर्म को बचाने वे सारथी बन जाते हैं।
और हम थोड़ी असफलता मिलने से निराशा से घिर जाते हैं।
बात नापसंद होने पर मनमुटाव करके सहन नहीं कर पाते हैं।
दूसरों के शब्द चुभ जाते हैं जब, हम क्रोध में तिलमिलाते हैं।
क्यों नहीं हम कृष्ण से सीख निन्यानबे गलतियां भूल जाते हैं।