माँ
न जाने क्यों आज मेरा मन बहुत उदास है l
मातृ दिवस पर उस लाड़- प्यार की प्यास है ll
सोचती हूँ मेरे जीवन का कुछ मोल न होता l
अगर माँ ने स्वयं प्यार से उसे यूँ गढ़ा न होता ll
अगर माँ का प्यारा हाथ मेरे सिर पर न होता l
तो ये संस्कार, आचार- विचार कुछ भी न होता ll
वह भाषा, वह चाल ढाल और वह आत्म संयम l
वस्तु और परिस्थितियों को यूँ सँभालने का हुनर ll
उसका सब रिश्तों को इस तरह बख़ूबी निभाना l
कुछ बातों को हंसकर छोड़ देना व कुछ को भुलाना ll
कुछ भी हो, हर हाल में उसका सदा मुस्कुराना l
बड़ों का आदर और बच्चों का साथ निभाना ll
सोचती थी कभी आएगा मुझे भी यह कर पाना l
बच्चों की सखी-शिक्षिका व बड़ों की साथी बन पाना ll
जब भी आईने में देखती हूँ अब मैं स्वयं को l
खोजते हैं मेरे नैना वहां तेरी ही उस छवि को ll
हाँ अब मुझे होती है, कुछ ऐसी ही अनुभूति l
शायद जीवन चक्र की चलती है ऐसे ही ये गति ll
फिर मैं आइने में माँ और बच्चों में स्वयं को देखती हूँ l
हाँ स्वयं में माँ तथा मेरे बच्चों में स्वयं को देखती हूँ ll