मधुमास
दशों दिशाएं हुईं सुरभित।
हर शाख हुई है पल्लवित॥
आली आ गई क्या वसंत
सुन्दर सुमन हैं सुस्मित॥
प्रकृति करती सब सिंचित।
रहे नहीं शेष कोई वंचित॥
दिन में दिनकर देते ऊष्मा
निशा नभ है तारे जड़ित॥
ये लाल पीत पुष्प कुसुमित।
पुष्पों पर घूमें भ्रमर गुंजित॥
छाया यौवन यह नवोदित।
शोडसी हुई कुछ विचलित॥
है हृदयकमल मेरा प्रफुल्लित।
जाने क्यों मन होता विस्मित।
उमंगों की धधकी ऐसी ज्वाला
रोम-रोम हुआ है रोमांचित॥
चहुँ ओर मधुर शीतल सुवास।
लोग कहें आया फागुन मास॥
है प्रेम प्रणय का मधुमास यही
है धड़की-भड़की श्वास-श्वास॥