मित्र
मित्रता की दौलत से जो हो लबालब।
उसके लिए मिट्टी है दुनिया में ये सब।।
सुदामा और कृष्ण से मित्र मिलें जब।
जहाँ में बाकी सब फीका सा लगे तब।।
खून के रिश्तों से भी गहरा यह रिश्ता।
मित्र हर मुश्किल में, है एक फरिश्ता।।
मित्र को सदा हँसाए, न रहने दे उदास।
दिल के रहे पास, चाहे दूर रहे या पास।।
आंखों से आँसू और चेहरे की मायूसी।
दिल का दर्द व ज़िन्दगी की परेशानी।।
चुरा ही लेता है यह जैसे हो चोर कोई।
मित्र हो साथ तो खुशहाल जिन्दगानी।।
बचपन के मित्र हों या फिर कोई नया।
बेशकीमती हीरों से सहेजना इन्हें सदा।।
सच्चे मित्र पाने वाला बहुत भाग्यशाली।
मित्रों के बिना लगे जीवन खाली-खाली।।
जन्मे पृथक घरों में, फिर भी न कोई बाँटता।
न जाति-धर्म, न वर्ग न प्रांत और न ही भाषा।।
एक दूसरे के सुख-दुःख भी मित्र ही बाँटता।।
और कुछ लेने-देने की इन्हें नहीं अभिलाषा।।
यह है वही वृक्ष जो दुःख की धूप में बने छाया।
मुश्किलों की आँधी-वर्षा में रहे छत्र सा छाया।।
कड़वे बोलों ने इसके हर गलती से तुझे बचाया।
गलतियों को टाल कर मित्रता का फर्ज़ निभाया।।
दूर हों मित्र तो सदा रहती मिलने की आस।
जीवन में भर दें रस की फुहार जब हों पास।।
दोस्तों की सलामती की माँगें ये रोज़ दुआएँ।
हे प्रभु सदैव रहे मित्रताएं जिवित दुनिया में।।