नारी
सदैव सब को खुश रखने के प्रयत्न में,
अपनी खुशी को वह भूल ही जाती है।
बेटी, बहिन, पत्नी,बहू और फिर ‘माँ ‘
रिश्ते निभाने में स्वयं को भूल जाती है।।
हाँ वह है एक नारी जो जानती है,
बखूबी ये सब रिश्ते निभाना।
फ़ितरत है उसकी खुद के शौक,
जाने-अनजाने वह भूल जाती है।।
पति घर पर हो या बाहर परन्तु,
घर को सम्भालना वह जानती है।
यदि एक दिन वह न उठ पाये तो,
पूरी व्यवस्था ही बिगड़ जाती है।।
समाज के इस बदलते परिवेश में,
घर और बाहर दोनों संभालती है।
स्वयं की इच्छायें और शौक दबा,
घड़ी की सुईयों सी चलती जाती है।।
किन्तु हम घर वाले क्या कभी,
आभार या प्रेम प्रकट करते हैं?
प्यार और सम्मान देना तो दूर,
कभी तो तिरस्कृत भी करते हैं।।
वक़्त की ज़रूरत है अब हमारे इस,
पुरुष प्रधान समाज को बदलने की।
पर क्या हमारी ये अपेक्षा होगी पूरी,
क्योंकि यह भी जिम्मेदारी है नारी की।।
जी हाँ, समाज में लाना है परिवर्तन,
सिखा के हमारे बच्चों को यह दर्शन।
अगली पीढ़ी को न करना पड़े सहन,
बदलना है उनका व्यवहार-आचरण।।
सही अर्थों में तब ही मिल पाएगा,
नारी को पुरुष के समान ही स्थान।
फ़िर न होगा बलात्कार वअपहरण,
पा सकेगी ये अपने हक़ का सम्मान।।