नारी आज की
क्या मेरी सच्चाई है,
नित जग को क्या मैं दिखा रही।
कर्तव्य पथ पर अग्रसर हो,
निज स्वप्नों को भी मैं सजा रही।
नहीं जलूँगी अब किसी
मैं दहेज की बलि वेदी पर।
नहीं चाहूँगी रहना अब,
मैं सिर्फ गृहिणी ही बन कर।
निज अस्तित्व सहेजना,
घर एवं बाहर हर जगह पर।
स्वयं की प्रतिभाओं को,
निखारूंगी अब जागृत कर।
छूने को नीले नभ को,
उड़ना चाहूँ पंख लगा कर।
तोड़ दूँगी बेड़ियों को,
परंपराओं का सम्मान कर।
तिरस्कारपूर्ण नहीं,
जीवन जीऊंगी मैं गर्व कर।
मैं करुँगी कार्य ऐसे,
जगत को हो गर्व मुझ पर।