नारी या शक्ति
नारी तुम हो पूरी रामायण,
तुम ही हो कृष्ण की गीता।
सहन शक्ति की प्रतिरूप हो,
तुम हो जैसे थीं माँ सीता।
तुम नहीं केवल जननी एक,
तुम हो पालक जैसे सीता।
तुम हो कोमल सी सुहृदया,
तुम ही सहचरी औेर मीता।
तुम एकमात्र हो ऐसी दाता,
स्रोत जो कभी न हो रीता।
तुम हँसकर झगड़े टालती,
छोड़कर उसे जो गया-बीता।
नारी तुम्हीं इतिहास की नींव,
तुमसे ही खुश आज है जीता।
तुम से बँधी भविष्य की आशा,
तुम सचमुच हो एक निर्माता।
स्वयं को न कभी हीन समझो,
आज की लक्ष्मीबाई और सीता।
जननी इस सम्पूर्ण समाज की,
तुम्हारे बिन नहीं यह है जीता।