नशा बनाम शान
नशा हो कोई भी कैसा भी, अति का है नहीं अच्छा।
अगर हो कुछ भी सीमा में, बुरा वो हो नहीं सकता।।
शान इसको जो समझे, कभी अच्छा हो नहीं सकता।
नशा हो या हो यह एक शान,अच्छा कह नहीं सकता।
कोई पीता खुशी में तो कोई, दिल टूटने पर है पीता।
कोई मरने से डरकर, तो कोई यहाँ डर डर के है पीता।
कोई मदहोश होता जीने को, कोई मर मर के है जीता।
फ़िर कोई बिन पिए ही यहाँ,क्यों मदहोश सा है जीता।।
किसी को नशा दौलत का, किसी को शौहरत का नशा।
कोई रोटी को तरसे है यहाँ, कोई करता दारू का नशा।।
कोई बच्चों के लिए तरसे,किसी को बच्चों का भी नशा।
मेरे बच्चे ही दौलत हैं, फिर करूँ मैं किस बात का नशा।
कोई गाता बहुत अच्छा,है उसको मधुर आवाज का नशा।
कहीं गाने का,कहीं सुनने का है तो कहीं आवाज का नशा।।
किसी को है जवानी का नशा,तो किसी को रूप का नशा।
बुढ़ापे में वही सोचे,मुझे था तब जाने किस बात का नशा।
किसी को नशा विद्या का, तो कोई पद के नशे में है।
नशा यह टूटता जल्दी ही,अगर कोई थोड़े नशे में है।।
नशे की लत जो पड़ जाए, तो मुश्किल है सम्भलना।
आवश्यक हो जाता है,फिर नशा मुक्ति-करण करना।
बहुत अच्छा गर्व करना,यदि विद्या,बच्चों या देश पर है।
कोई गर्वित यहाँ,देश की सीमा पर तैनात सैनिकों पर है।।
मुझे भी गर्व,अपनी संस्कृति,भाषा एवं संस्कारों पर है।
किन्तु गर्व नशा बन जाए, तो उठना बहुत मुश्किल है।।