नेता
सबसे तेज सबसे आगे हों, वह नेता कहलाते पहले थे।
ज्यों-ज्यों राजनीति बदली, नेताओं के भी रूप बदले थे।
देश की आजादी के लिए लड़े मरे वे नेताजी कहलाये थे।
गोरों से लड़ने को सुभाष आजाद हिन्द फ़ौज बनवाये थे।
जब आज़ादी मिली नेताजी न थे, राजनीति पसरी थी यहाँ।
सबको आगे सबसे रहना इसलिये भारतमाता बँटी थी यहाँ।
फिर भी नेताओं को देश और अपनी कुर्सी प्यारी थी यहाँ।
अब सिर्फ कुर्सी ही प्यारी लागे, देश की उन्हें पड़ी थी कहाँ?
अब तो नेताओं के दर्शन हमें बस चुनावों में ही हो पाते हैं।
वोटों की खातिर अब तो नेता कंप्युटर,नोट भी बँटवाते हैं।
जनता के सेवक स्वयं को कहकर वे हाथ जोड़कर आते हैं।
जीतने के बाद वही नेता फिर चेहरा हमें कहाँ दिखलाते हैं?
भोली जनता को अपनी चुपड़ी बातों से कैसे बहलाते हैं।
कहीं कहीं तो ये नेता जाति-धर्म पर हमें खूब लड़वाते हैं।
नेताओं की पोल खुली फिर कुछ लोग जागृत हो जाते हैं।
जन जन में बढ़ता गया आक्रोश, कब तक वे सह पाते हैं?
है दोष यहाँ कुछ अपना भी, हम ही उनको चुनवाते हैं।
क्यों नहीं समय पर जागरूक हो,सही चुनाव कर पाते हैं?
अपने मत का उपयोग करेंगे,यदि यह प्रण हम कर पाते हैं।
तब निश्चय ही अच्छा, सक्षम व जिम्मेदार नेता हम पाते हैं।।