निडर बनो
तुम कभी डरो नहीं, तुम कभी झुको नहीं।
चरित्र सदा निर्मल रहे, समाज से न ये डरे।
कर्म कुछ ऐसे करो, याद यह दुनिया करे।।
अशक्त न पड़ना कभी,समाज न अबला कहे।
पुरुष से ऊपर न सही, पर न कभी कम रहे।।
इज्जत पर कभी आँच, आने न पाए तुम्हारे।
सीख लो तुम कुछ हुनर, जैसे योग - कराटे।।
नेत्रों में शोले भड़क उठें, रक्त भी धधक उठे।
कोई आए बीच में, वह फिर कुछ न कर सके।।
बड़ों को सम्मानित रखो, छोटों को भी प्रेम दो।
पर अपने आप को तुम, टूटने कभी भी न दो।।
तुम हो पुरुष की जननी, तुम हो सदैव वंदनीय।
तुम सदा सुदृढ़ रहो, नहीं बनना कभी निंदनीय।।
समाज चल न पाएगा, तुम जो कभी टूट गईं।
घर और समाज की,तो नींव ही तुम पर टिकी।
तुम पर है गर्वित संस्कृति, पूजनीया तुम रहो।
तुम कभी झुको नहीं , तुम सदैव निर्भय रहो।।
तुम सहनशील हो पर, शक्ति की भंडार हो।
खुश रहो तुम सदा व सबको भी खुश रखो।।
कह सको मन की बात, और कर भी सको।।
स्वमन तो है ज्ञात ही, औरों का भी पढ़ सको।।
तुम सदा बढ़ती रहो, तुम कभी रुको नहीं।
तुम कभी डरो नहीं, तुम कभी झुको नहीं।।