परिवर्तन
आजकल हर इंसान भयभीत और तनाव ग्रस्त है। किसी को चिंता है पैसे की तो कोई बीमारी से है परेशान।
जिसको धन और स्वास्थ्य की कोई तकलीफ नहीं तो डर है कि कोरोना हो न जाए।
सब कुछ ठीक-ठाक है
पर फिर भी दुःखी हैं क्योंकि किसी मित्र या सम्बंधी ने कुछ गलत कह दिया अथवा दुर्व्यवहार किया। कुछ तो
अपेक्षित सम्मान न मिलने से ही दुःखी हो जाते हैं।
ऐसे वातावरण में समाज में आशा, उत्साह और आनंद को बढ़ाने के लिए हमें अच्छा साहित्य पढ़ने की आवश्यकता है।
ऐसे में एक पुरानी कथा याद आ गयी।
एक बार भगवान बुद्ध के शिष्य किसी गाँव में भिक्षा मांगने गए। तब एक ग्रामवासी ने उन्हें भिक्षा न देकर बहुत बुरा
भला कहा फिर भी वे बौद्ध भिक्षु शांत रहे परन्तु जब वह ग्रामीण महात्मा बुद्ध के विषय में अपशब्द कहने लगा तो
भिक्षु से बुद्ध का अपमान सहा न गया और वे उस पर क्रोधित हो कर चिल्लाने लगे। जब बुद्द को य़ह ज्ञात हुआ
तो वह दुःखी हो गए कि उनके शिष्य ने ऐसा क्रोध किया। पूछने पर शिष्य ने बताया भगवान वह व्यक्ति आपको
अपशब्द दे रहा था जो मेरे लिए असहनीय था। यह सुनकर बुद्ध मुस्कुराए तथा बोले कि वह दे रहा था तो तुमने लि
ए क्यों, यदि कोई व्यक्ति तुम्हें कुछ भेंट दे और तुम उसे अस्वीकार कर दो तो वह भेंट-वस्तु उस व्यक्ति के पास
ही रहेगी। अतः जब कोई व्यक्ति तुम्हारा अपमान करे या अपशब्द बोल दे तो उसे तुम अस्वीकार करो, अपने मन या
दिल में न आने दो। तभी तुम निर्विकार एवं आनंदित रह सकते हो।
बुद्ध की य़ह कथा कितनी सत्य तथा वैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है। जैसे दर्पण से प्रकाश की किरण परावर्तित हो
लौट जाती हैं, वैसे ही दर्पण बनकर हमें कुछ भी गलत ग्रहण नहीं करना चाहिए। मन को स्वस्थ रखने का यह बहुत
आसान उपाय है।