पर्वत
पर्वत सा अटल अडिग संकल्प, सदा ही रखना होगा।
अंगद से अडिग रहोगे तो, रावण को भी झुकना होगा।
पहाड़ों से ही हम सबको,परोपकार भी सीखना होगा।
देने से भंडार भरे यूँ रहें कि फिर खाली कभी ना होगा।
पर्वत से उद्भूत हुई नदियाँ, हमको यही सिखलाती हैं।
अनवरत बढ़ना आगे तुम, रुकने से काई जम जाती है।
गिरि के अन्तर से निकले,कल-कल करते झरने कहते।
शीतलता मधुरता नहीं खोना, सब ऊपर से नीचे बहते।
पर्वत सा विशाल हृदय हो, जिसमें उदारता हो बसती।
हर दिल हो जाये आपका, जब हँसी-उमंग भी बसती।
पर्वत-कंदराओं में रहने वालों ने, रामजी की मदद की।
धरत-पुत्री सीता मैया की, महावीर ने खोज खबर की।
गिरी की शान्त गुफाओं में ही, पाण्डवों ने शरण ली थी।
हिमगिरि की शीतलता में,महात्माओं ने तपस्या की थी।
कितने ही बौद्ध भिक्षुओं ने, पहाड़ों में गुफाएं बनाई थीं।
शान्ति में अध्ययन कर, उन्होंने शिक्षा व दीक्षा पायी थीं।
दक्षराज के यज्ञ में जब सती जी ने,आत्म-आहुति दी थी।
महादेव ने भी कैलाश पर्वत पर,खूब घोर तपस्या की थी।
देवी माँ ने भी पर्वत पर ही, डेरा डाल ज्योति जगायी थी।
कोरोना से पहले तक गर्मी में,जनता पर्वतों पर जाती थी।