पीडा
मेरी थी सर्व प्रथम कविता, दिल के घावों पर मरहम सी।
जैसे रिसते हुए नासूरों पर, रखे रुई के फाहों सी।।
अपना दर्द सह सकते हैं, अपनों का दर्द न देखा जाता है।
जब निर्दोषों की हत्या हो, मानव दिल फट सा जाता है।।
भूखे बच्चों की बेचैनी अब मुझको बहुत रुलाती है।
मासूमों की जानें जातीं तो पीड़ा को भी पीड़ा होती है।।
सीमा पर फौजी शहीद हों तो छाती चौड़ी होती है।।
जब अपना ही ग़द्दार बने तो भारत माँ भी रोती है।।
पर पीड़ा को अपना समझे, वही मानव कहलाता है।
नहीं भेद भाव जब रहता, भाई चारा बढ़ जाता है।
वसुधैव कुटुम्बकम के सिद्धांत से यह सीखा जाता है।।
सभी मिल जुल कर बढ़ें, जैसे भाई भाई का नाता है।
सब के सुख दुख से फिर सब के सुख दुख का नाता है।।