पिता अनुरागी - 2
बच्चों के लिए माता पिता दोनों पूजनीय हैं सर्वदा ही,
किन्तु पिता के विषय में ज्यादा लिखा गया होगा नहीं।
त्याग की तो साक्षात मूरत पिता में दिखती है हमको,
वे कितने कोमल-हृदय हैं पर दिखते कठोर ही सबको।
बचपन से कंधों पर झूला झुलाते पलकों पर बिठाते,
खिलौने ढेरों लाकर बच्चों को सारी खुशियाँ दिलाते।
बच्चों के लिए घोड़ा बन, खूब घुड़सवारी वे हैं कराते,
यदि रूठ जाएं जो बच्चे कभी, हँस कर उन्हें वे मनाते।
त्योहार पर तोहफ़े और नये कपड़े ज़िद कर के दिलाते,
चाहे स्वयं पुराने पहनें पर फ़िर भी ख़ुश हैं ऐसा जताते।
आँखें नम हो जातीं, कभी बच्चे जो कुछ पुरस्कार पाते,
बच्चों से कोई उपहार पाकर गर्व-खुशी के मोती गिराते।
खेल खेल में ही बच्चों को अपना हर कौशल सिखलाते,
दुनियादारी के हर पहलू से अवगत पिता ही उन्हें कराते।
किन्तु दुर्भाग्य से बड़े होकर बच्चे उन्हें ही आँखें दिखाते,
हुई क्या भूल हमसे, सोचते लेकिन समझ कुछ न वे पाते।
ज़िन्दगी भर जो काम के तनाव व जद्दोजहद में बिताते,
बुढ़ापे में नाती-पोतों के साथ वे बच्चों से खिलखिलाते।
माँ के साथ नोंक-झोंक और बच्चों की खुशी से वे हर्षाते,
अपने आशिर्वाद से घर-गृहस्थी को खुशहाल यूँ ही बनाते।