प्रकृति
सुना हमने गंगा - यमुना पहले सी स्वच्छ हो गईं हैं|
यहाँ भी चारों ओर, फूल और कलियाँ खिल गईं हैं||
अब है चिडियों का कलरव, नहीं मच्छरों की भिन्-भिन्|
सुन रहे हैं घर के फूलों पर भी,हम भौरों की गुनगुन ||
हे मानव अब भी समय है, जाग जा और सुन|
सुधार ले स्वयं को अब और सँवार ले कुछ गुन ||
जानते हैं सब, प्रकृति की, श्रेष्ठतम “कृति” है तू|
न अभिमान व अहंकार में नष्ट कर इसे तू ||
जो जीवन को सफल और सुगम बनाना है तुझको|
न हो प्रदूषित वातावरण, ध्यान रखना होगा सबको||
इस प्रगति और प्रकृति में सामंजस्य बिठाना होगा|
प्रकृति की सुषमा से, अपना संबंध जोड़ना होगा ||