रात की होली
सखी री मैं ने,
होली खेली कल रात।
सखी री तोसे,
कैसे कहूं मैं सारी बात।।
कल मेरे घर पर आये कन्हैया,
आय पकड़ लीन्ही मोरी कलैया,
जबरन गुलाल, रँग दीन्हे मोरे गात।
सखी री तोसे कैसे कहूं सारी बात।
सखी…..
हिल मिल खेलें लोग लुगाई होली,
रंग के नशे में, मैं मदहोश हो ली,
काबू रहे ना, कुछ मोरे ज़ज्बात।
सखी री…..
बड़े प्रेम से सब मीत मिलत हैं,
एक दूजे को वो गुलाल मलत हैं,
हँसी ठिठोली करें और ढोल बजात।
सखी री……
नन्द,नन्दोई और देवर भाभी के संग,
जबरन लगाएँ वो तो देखो कैसे रंग,
माँ-बापू की, सुनें न अब कोई बात।
सखी री……..
संग सखियों के बनी हैं टोली,
नाचें झूमें और गावत हैं होली,
चले हैं ऐसे, जैसे हो यह कोई बारात।
सखी री…….
सपना देखूँ मैं सोते-सोते,
लागे कन्हैया सच में होते,
आँख खुली,सुन मोरे पति की बात।
उठो, आओ, चाय पियो मेरे साथ।
सखी री…….
कलाई से आगे बढ़ी नहीं बात,
मिली न कोई होली की सौगात,
मन के अधूरे रह गये अरमानात।
सखी री तोसे कैसे कहूं सारी बात।
सखी री मैं ने, होली खेली कल रात।
सखी री तोसे, कैसे कहूं सारी बात।।