रिश्ते
रिश्ते ये कितने प्यारे-प्यारे,
बंध जाते जन्म से ही सारे।
पारिवारिक रिश्तों का बल,
दूरी हो फिर भी देते संबल।
विवाह के साथ ही मिलते,
प्यारे-न्यारे से कुछ रिश्ते।
सन्तान होने पर है मिलता,
अनमोल प्यारा नया रिश्ता।
पर इन रिश्तों के भी ऊपर है,
एक रिश्ता दोस्ती का ज़रूर है।
दिल से दिल तक जाता जो है,
भाईचारे का रिश्ता-नाता वो है।
गुरू शिष्य बीच वह नाता है,
सबसे अद्भुत जो कहलाता है।
गुरु की प्रतिमा से शिक्षा पाता,
काट अंगूठा दक्षिणा दे जाता।
इसके अतिरिक्त भी कुछ नाते,
समाज,राष्ट्र व विश्व हैं जोड़ते।
मानव का मानव से जो नाता,
वसुधैव कुटुम्बकम कहलाता।
पर धरती पर जन्म लेते ही,
जुड़ जाता सृष्टि से वैसे ही।
धरती माता,नदियां हैं माता,
पोषण देती हमको गौमाता।
थाली में पानी भरकर माँ जब,
चन्दा मामा से मिलवाती तब।
छोटा शिशु माँ से सीख लेता,
वह भी प्रकृति को आदर देता।
हो मानव या कि जीव-जंतुओं से,
मिलता प्रेम-आदर सब रिश्तों से।
निर्जीव वस्तुएं भी अपनी लगतीं,
लगाव प्यार से जब ये जुड़ जातीं।
रिश्तों का अर्थ यह समझाते,
शब्दों के अर्थ नहीं हैं पढ़ पाते।
ख़ामोशी पढ़ जाया करते हैं ये,
चेहरे के भाव खूब समझते ये ।
रिश्ता कोई भी हो, कैसा भी,
जुड़ने के बाद सम्भालना भी।
पौधों जैसे इन्हें सींचना जरूरी,
दे सम्मान-प्रेम का खाद-पानी।