ऋतु बसंती
बादलों को सूर्य ओढ़े आ गए।
देख प्यारी ये छटा वो भा गए।।
प्रात है या शाम चलता क्या पता।
सर्द मौसम आ जरा ये तो बता।।
भानु किरणें आज फिर सकुचा गई।
प्रात ही अपनी झलक दिखला गई।।
पुष्प क्या खिलते कली आई नहीं।
पत्तियाँ टूटी नयी आई नहीं।।
आज फिर ये ऋतु बसंती आ गई।
भूमि पर नव कोपलें लहरा गई।।
चक्र ऋतुओं का रहे चलता यही।
धूप छावों का चले खेला वही॥
बात तुमने सुन सखी अच्छी कही।
आज सचमुच ऋतु बसंती आ रही॥
पेड़ पर पत्ते नए आने लगे।
ले उमंगों संग नव आशा जगे॥
पूज पट्टी आज बच्चे लिख रहे।
मातु की पूजा खुशी से कर रहे॥
आज आओ पंचमी हम लें मना।
शारदे मांँ को सभी हम लें मना॥