समय-चक्र
भूत काल जो बीत गया, क्यों उसको मानव रोता है।
भविष्य आने है वाला क्यों उस को चिन्तित होता है।।
वर्तमान है सुखद, सत्य, निर्विवाद, निरन्तर साथ तेरे।
क्यों नहीं संवारने इस पल को मानव तत्पर होता है।।
हैं भूत काल की सुन्दर स्मृतियाँ मन मन्दिर में जो तेरे।
क्यों नहीं पिरोकर माला के मोती से उन्हें संजोता है।।
हैं जो कुछ भी खट्टे,दुःखद पल जीवन में आये ग़र तेरे।
उनको तू जीवन की सच्चाई सीख समझ कर ढोता है।।
संस्कारों की पक्की नींव रहे एवं अनुभव की सीख मिले।
तो तेरा वर्तमान वाद-विवाद चिंताओं से सदैव ही परे रहे।
माँ बाप से मिली सीख तुझे जो कभी न विस्मृत हो पाये।
तेरे जीवन का हर एक पल सुरभित और सुन्दर हो जाये।।
भूतकाल में मिली तेरी शिक्षा-संस्कार न केवल जीवित रहें।
वरन उनको व्यवहार में अपनाकर तू जो पल्लवित खूब करे।
उनको वर्तमान में नव पीढ़ी को अग्रसारित करें कर्तव्य तेरे।
स्वतः ही सुन्दर व सुखमय भविष्य की नींव अवश्य पड़े तेरे।।
भूत भविष्य को जोड़ने वाला सबसे न्यारा यह वर्तमान तेरा।
भूत का रोना एवं भविष्य की चिंता छोड़,तू कहना मान मेरा।।
है कर्म प्रधान जीवन तेरा यह, जैसा बोया वैसा फल काटेगा।
हैं तीनों काल पृथक नहीं यह समय चक्र चलता ही जायेगा।।