शब्दार्थ
मैं शब्द - तुम अर्थ, तुम बिन जीवन व्यर्थ।
तुम मिले तो जिन्दगी को, मिला नया रूप।
भूल गयी जैसे मैं स्वयं का ही निज स्वरूप।
सचमुच बदल ही गए, हमारे कुछ शब्दार्थ।
मैं शब्द…
ज्ञात नहीं मैं और तुम से,कब हो गए थे हम।
मेरा तुम्हारा कुछ नहीं, सब हमारा था अब।
हाँ,दोनों ही बदल गए थे,अब शब्द और अर्थ।
मैं शब्द….
पता नहीं चला कब लड़की से बन गई औरत।
पुनः औरत से बन गई थी, ‘माँ’ मैं एक व्यस्त।
फिर गृहस्थी के चक्कर में, भूल गई शब्दार्थ।
मैं शब्द….
शब्द जो एक नारी थी, प्रेरणा भी थी और प्यासी थी।
प्रेम-संगीत से परिपूर्ण,कभी रानी तो कभी दासी थी।
प्रेम- सरगम पर कभी वाचाल, तो कभी निःशब्द थी।
मैं शब्द….
मेरे शब्द का शृंगार,क्या खूब किया प्रिय अर्थ।
देकर इसको भाव - मूल, कर दिया चरितार्थ।
अब दुनिया स्वयं ही, देखेगी इनका भावार्थ।
मैं शब्द…
अभिलाषा है यही, कि जीवन को करें सार्थक।
न खो दें इस जीवन को,यूँ ही बातों में निरर्थक।
देकर दुनिया को अमूल्य भेंट,करें इसे फलितार्थ।
मैं - - शब्द, तुम - -अर्थ, तुम बिन जीवन व्यर्थ ॥