शिव शंकर
हे शिवशंकर शम्भू त्रिपुरारी,
तुम्हारी महिमा तो है न्यारी।
कंठ भुजंग शीश पर गंगा,
संग में तुम्हारे पर्वत दुलारी॥
श्री राम पूजते थे तुमको।
श्री राम आराधक तुम हो।
पूज्य-पूजक रीति चलाई,
सुर-असुर पूजते तुमको॥
किया घोर तप दुर्लभ-दुर्गम।
हुआ शिव-शक्ति का संगम।
पूजा-प्रेम-तपस्या वह उनकी,
मानव को सिखलाते संयम॥
है दुर्गा-शिवा-शक्ति हर नारी,
समझो न उसे अबला नारी।
अर्द्धनारीश्वर रूप समझाए,
पुरुष समान मान अधिकारी॥
अब हो जाए कृपा तुम्हारी,
खुश रहें पुरुष सम ही नारी।
कोई नहीं खेलेगा तब उनसे,
ऐसे समाज पर हों बलिहारी॥