श्रावण
श्रावण आया श्रावण आया,
नभ पर मेघछत्र ज्यों छाया।
हरित धरा की शोभा देखके,
सूरज भी है कुछ शरमाया।।\
आशुतोष औढरदानीजी का,
आज धरा पर तन-मन आया।
कर ले ए मन पुण्य कर्म कुछ,
जब यह पावन मास है आया।।
कैलाश मानसरोवर न जा सके,
देवालय अभी खुल नहीं पाया।
नमन-जाप में मन नहीं लगता,
मोह-माया ने मन है भरमाया।।
सच्ची शांति चाहिए तुझे रे मन,
तो ईश्वर में लग छोड़ यह माया।
सच्चे भक्तों को आशीष देने को,
शंकरजी ने डमरू आज बजाया।।
ध्यान लगा कर धूनी रमा कर,
जप ले तू ओम नमःशिवाय।
घर में बैठकर पूजा पाठ किया,
तो अन्तर्मन में ही उनको पाया।।