सुरभित शांति
हूं प्रफुल्लित आज इतनी मैं झूम कर नृत्य कर लूँ।
पैर पड़ते नहीं ज़मीन पर मेरे उछल नभ मैं छू लूँ।
आज इठलाती उपवन में तिरंगी तितली पकड़ लूँ।
छोड़ उसे हृदय में पुष्पों की खुशबू हृदय में भर लूँ॥
सुरभित हृदय से आज में विश्व में खुशियाँ मैं भर दूँ।
न हो युद्ध कोई विश्व में अब चहुँ ओर शांति मैं कर दूँ॥
न कोई अनाथ बालक या वृद्ध रोटी को धरा पर तरसे।
अब न कोई बालिका लुटे यहाँ,केवल आनंद ही बरसे॥
न हो शेष द्वेष,रोष,लालच,घृणा केवल सुख शांति रहे।
मेरा भारत ही नहीं अब सम्पूर्ण वसुन्धरा सुरभित रहे।