स्वतंत्रता दिवस
गुलामी की बेड़ियाँ टूटीं, देश आजाद हुआ।
खुश थे बच्चे बूढे सभी, देश स्वतंत्र हुआ।।
आओ हम सब मिलकर, मनाएँ ढेरों खुशियाँ।
सात दशकों से,मना रहे हैं जैसे सभी यहाँ।।
सँवारा था चाव से बड़े, पूज्य नेताओं ने जिसे।
ले आये हैं हम, किस कगार पर अब इसे।।
ज़रा सोचो इसका दोषी, ठहरायें हम किसे।
क्या है कारण इसका?दोष दें हम ऐसे किसे।
बढ़ रही हैं हर तरफ चिंता और परेशानियाँ।
कैसे मनाएँ हम…..
क्या है यह गांधी जी के, सपनों का स्वर्णिम भारत
न होगा हिन्दू,मुस्लिम, ईसाई, सिख जहाँ आहत।।
सब में हो जहां सिर्फ प्यार और भाइचारे की चाहत।
सब को मिले चैन और अमन की साँस व राहत।।
पर कैसे जूझ रहे हैं सब, कितनी हैं परेशानियां।
फ़िर कैसे मनायें…..
बच्चे हों या बड़े, सभी तो हैं यहाँ व्यस्त हरदम।
कहाँ है समय चलने का, मिलाकर कदम से कदम।।
कोई सूखा,बाढ़ या भूचाल आए या हो हमला।
ग़रीबी,भूख, आतंकवाद या हो कोरोना से लड़ना।।
ऐसे मुश्किल दौर में लोग कालाबाजारी में व्यस्त यहाँ।
फ़िर कैसे मनायें…..
कीमतें छू रही हैं गगन और बच्चे तरस रहे हैं रोटी को।
य़ह महंगाई का दौर बढ़ा रहा है अब कालाबाजारी को।।
आतंकवादी दानव लील रहा है, बाल-मन की कोमलता।
आरक्षण व भ्रष्टाचार जैसे दैत्य,खा रहेहैं इनकी सरलता।।
आवश्यकता है किसी की, जो ला सके वापस खुशियाँ।
फ़िर सब मिलकर……
कोई हो जो बदले समाज के, इस कलुषित रूप को।
कर सके निर्मित एक स्वच्छ,शांत वआदर्श समाज को।।
तब हर प्राणी, हर जाति धर्म का, रह सके बेखौफ यहाँ।
न हो ग़रीबी,लाचारी, घूसखोरी, और कालाबाजारी जहाँ।।
देश आज़ाद हो तब, जब टूटें सभी बुराइयों की बेड़ियाँ।
सही रूप में सब मिल कर…..
हम सब स्वतंत्रता दिवस के इस पावन अवसर पर।
करें प्रण बनाने का ऐसा सुदृढ़ प्यारा भारत सुन्दर।।
प्रभु से यही है प्रार्थना कि रहें सब यहां मिलजुलकर।
य़ह है मेरा भारत महान, कह सकें हम सब गर्व कर।।
यथार्थ में बसती हैं हर घर, हर दिल में इसके खुशियाँ।
आओ मनाएँ स्वतन्त्रता दिवस की हम सब खुशियाँ।।