वफ़ा
हम तो बस इश्क में, हमेशा ही वफ़ा करते हैं।
लोग दुनिया में न जाने,क्यों नहीं वफ़ा करते हैं?
वे देते हैं नजराना यहाँ, धन दौलत, सोना चांदी।
हम तो बस नज़र-ए-यार, सिर्फ़ वफ़ा करते हैं।
लोग बदलते हैं आशिक यहाँ,फैशन की तरह,
हम तो बस इश्क-ए-इला एक ही दफ़ा करते हैं।
लोग समझते हैं, औरत को खिलौना-ए-नुमाईश,
खूब खेलते उससे और फ़िर उसे ही दफा करते हैं।
लोग मजबूरी का खूब, उठाते हैं फ़ायदा भी यहाँ,
कुछ हुआ तो,ले-देकर मामला रफा-दफा करते हैं।
इश्क़ से सराबोर हो जाए, दुनिया यह सारी लोगो,
घरों के साथ,क्यों नहीं दिलों को भी सफा करते हैं?
रब से गुजारिश है मेरी, ख़ुश रहें हमेशा वे भी,
जो रखते हैं,दिल में बैर और नहीं ज़फ़ा करते हैं।
उम्र आधी तो गुजर गयी, जहाँ में कुछ ऐसे ही,
मनाते हैं उनको जो हमें,अक्सर ख़फ़ा करते हैं।
फ़ितरत - ए - सुषमा ही कुछ ऐसी है जनाब,
हम तो यूँ ही बस सब से वफ़ा ही वफ़ा करते हैं।