योग
रे मन! कुछ तो कर ले तू इस काया का उपयोग।
एक दिन माटी में मिल जायेगी यह कहते हैं लोग।
इस काया में बसे आत्मा उसे परमात्मा से जोड़।
यह है मन्दिर इसको रखना तू स्वच्छ और निरोग।
तन और मन का मिलन प्रभु से होता है शुभ संयोग।
उसी साधना के लिये तो हम सब करते हैं कुछ योग।
व्यायाम और आत्म चिन्तन जब दोनों मिल जाए।
स्वस्थ,
स्फूर्त शरीर और सुन्दर आत्मा तब हो जाए।
बच्चे, बूढे या हों जवान योग सभी लोग लेवें सीख।
यह है सब के लिये लाभप्रद ऐसा कहती है तारीख।
प्रातः काल में निराहार करें तो होता है यह सर्वोत्तम।
सुबह यदि व्यस्त हों आप तो कभी भी करना उत्तम।
व्यायाम को श्वांस से जोड़ते योग के होते कई प्रकार।
सबसे अच्छा है करना प्राणायाम और सूर्य नमस्कार।
निज क्षमता के अनुरूप ही करने चाहिए ये आसन।
लेने के देने पड़ जाएं यदि गलत हो जाय योगासन।
अपने देश में सदियों से ही योगी करते थे योगासन।
आज विश्व को सिखा रहा है भारत सभी ये आसन।
अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मान कर सीख रहे सब लोग।
पर दुर्भाग्य कि छोड़ते जा रहे हैं अपने ही कुछ लोग।
योगासन हो,आयुर्वेद हो या अपनी संस्कृति-संस्कार।
अपनाकर ये सभी हमें बनाना है शान्ति प्रिय संसार।